नैतिकता पर 3 सर्वश्रेष्ठ शिक्षाप्रद कहानियां । Best Moral Stories In Hindi
Best Moral Stories In Hindi
गुरू की अनमोल शिक्षा
एक बार एक अध्यापक कक्षा में बच्चों को पढ़ा रहे थे। सभी बच्चे अपने अध्यापक की शिक्षा शैली पर भाव मुखर हो रहे थे और अध्यापक द्वारा पूछे गए सवालों के सटीक जवाब दे रहे थे लेकिन अध्यापक और शिष्यों के इस प्रेम प्रसंग में एक ऐसा भी विद्यार्थी था जो चुपचाप एक कोने में गुमसुम बैठा था।
क्योंकि अध्यापक का कक्षा में पहला दिन था इसीलिए उन्होंने उस छात्र से कुछ ना कहा, “शायद किसी बात को लेकर परेशान था बेचारा” किंतु अध्यापक ने जब उस बच्चे को प्रतिदिन नोटिस किया तो देखा कि वह हमेशा गुमसुम ही रहता”।

आखिर चार-पांच दिनों के बाद अध्यापक ने उसे अपने कैबिन में बुलाया और पूछा…. “तुम कक्षा में हमेशा उदास और चुपचाप बैठे रहते हो, पढ़ाई में भी तुम्हारा दिल नहीं लग रहा, ना ही तुम मेरे लेक्चर पर ध्यान देते हो, आखिर ऐसी क्या बात है जो तुम्हें इस उदासी के दलदल में घसीटे जा रही है”? मैं तुम्हारा अध्यापक हूं मुझसे कुछ भी मत छुपाना।
बच्चा हिचकीचाहते हुए बोला, “स… सर वह मेरे अतीत में कुछ ऐसा हुआ है जिसकी वजह से मैं परेशान रहता हूं। समझ नहीं आता आखिर क्या करूं”?
अध्यापक एक बहुत ही निर्मल हृदय के व्यक्ति थे। वह इस बात को कतई कबूल नहीं कर सकते थे कि एक अध्यापक के होते हुए उसका शिष्य बाल अवस्था में ही किसी गंभीर समस्या का शिकार बने तो उन्होंने उस बच्चे को शाम को अपने घर बुलाया।
शाम होते ही छात्र तुरंत अध्यापक के घर पहुंचा। छात्र को देखते ही अध्यापक ने उसे एक कुर्सी पर बैठाया और खुद रसोई में चले गए शिकंजी बनाने के लिए। उन्होंने जानबूझकर शिकंजी में नमक ज्यादा डाल दिया और बाहर आकर एक गिलास कुर्सी पर बैठे छात्र को दिया, “लो शिकंजी पियो”।
छात्र ने गिलास लिया और जैसे ही शिकंजी की पहली घुट ली अधिक नमक होने के कारण उसके चेहरे के हाव-भाव बदल गए। छात्र के चेहरे को देखकर अध्यापक बोले, “क्या हुआ तुम्हें शिकंजी पसंद नहीं आई”?
छात्र – ऐसा नहीं है सर बस नमक थोड़ा ज्यादा है।
अध्यापक – अरे अब तो यह बेकार हो गई, कोई बात नहीं लाओ मैं इसे फेंक दूं।
अध्यापक ने छात्र का गिलास लेने के लिए अपना हाथ आगे बढ़ाया किंतु छात्र ने यह कहते हुए इंकार कर दिया कि “सर नमक ही तो ज्यादा है थोड़ी चीनी मिलाएंगे तो शिकंजी का स्वाद पीने लायक हो जाएगा”।
शिष्य की यह बात सुनते ही अध्यापक के चेहरे पर एक मुस्कान दौड़ पड़ी और वह बोले, “सही कहां तुमने अब बस इसे समझने की देर है, मान लो यह शिकंजी तुम्हारी जिंदगी है और इसमें घुला अधिक नमक तुम्हारे अतीत के बुरे अनुभव है। जैसे हम शिकंजी से इस नमक को बाहर नहीं निकाल सकते वैसे ही बुरे अनुभवों को भी हमारे जीवन से अलग नहीं कर सकते। वे भी हमारे जीवन का एक हिस्सा है। किंतु जैसे अधिक नमक में थोड़ी चीनी मिलाकर शिकंजी का स्वाद बदला जा सकता है वैसे ही जिंदगी में भी बुरे अनुभव को भुलाने के लिए थोड़ी मिठास घोल कर उसे खूबसूरत बनाया जा सकता है”।
अपने अध्यापक की ऐसी प्रेरणादायक बात सुनकर छात्र काफी प्रसन्न हुआ और उसने निश्चित कर लिया कि अब वह अपनी अतीत की बातों पर कभी दुखी नहीं होगा।
निष्कर्ष – हम सभी इस बात से भलीभांति परिचित हैं कि अपने जीवन में हम अधिकतर समय अपने अतीत के बुरे अनुभव को कोसते रह जाते हैं, जिस कारण हम अपने वर्तमान पर ध्यान नहीं दे पाते और अपना भविष्य बिगाड़ बैठते हैं। अपने अतीत की गलतियों को हम सुधार नहीं सकते किंतु कम से कम उन्हें भूल तो सकते हैं और उन्हें भुलाने के लिए हमें नई मीठी यादें आज बनानी होंगी।
जीवन में कुछ ऐसा कर दिखाइए कि कल मरने पर अफसोस ना हो।
पिता का सवाल और पुत्र का जवाब
एक बार एक गरीब पिता ने अपने पुत्र को अच्छे संस्कार देते हुए उसकी खासी परवरिश की। उसे अच्छा पढ़ाया – लिखाया और सभी प्रकार की कमियों की पूर्ति की। बड़ा होकर उसका पुत्र एक बड़ी मल्टीनेशनल कंपनी में सीईओ बन गया। पिता की परवरिश ने उसे इतना प्रचंड बनाया था कि सफलताएं उसे चारों तरफ से घेरे खड़ी थी।
कुछ दिनों बाद उसकी शादी एक गुणवान कन्या से हो गई और ठीक एक वर्ष बाद उनके दो पुत्र हुए। अब उसका भी एक छोटा और संपन्न परिवार बन चुका था।
एक दिन उस गरीब पिता को अपने पुत्र की याद सताने लगी और वह अपने पुत्र के वियोग में ज्यादा विलंब ना करते हुए उससे मिलने के लिए कंपनी में ही पहुंच गया। वहां जाकर उसने देखा कि उसका पुत्र एक आलीशान कैबिन में बैठा था और हजारों मजदूर उसके अधीन कार्य कर रहे थे। अपने पुत्र की ऐसी धाक और उच्च पद देखकर पिता का सीना गर्व से फूल उठा।
उस समय पुत्र अपने कर्मचारियों के साथ एक विशेष चर्चा में था तो उसके पिता अपने पुत्र के कंधे पर हाथ रखकर खड़े हो गए और अपने पुत्र से पूछा – “बेटा यह बताओ, इस दुनिया का सबसे शक्तिशाली इंसान कौन है”?
“मेरे अलावा कौन हो सकता है, पिताजी” ‘पुत्र ने जवाब दिया’।

अपने पुत्र के मुख से ऐसा जवाब सुन पिता का दिल 100 टुकड़ों में बट चुका था। उन्होंने अपने पुत्र से इस जवाब की आशा बिल्कुल नहीं की थी। उन्हें विश्वास था कि उनका पुत्र कहेगा “पिताजी इस दुनिया के सबसे शक्तिशाली इंसान आप है”, जिनके संस्कारों ने मुझे यहां तक पहुंचाया’।
पिता की आंखें भर आई और उन्होंने जाने के लिए कैबिन का गेट खोला। पीछे मुड़कर पिता ने अपने पुत्र से वही सवाल एक बार दोबारा पूछा – “इस दुनिया का सबसे शक्तिशाली इंसान कौन है”?
पुत्र – “पिताजी आप इस दुनिया के सबसे शक्तिशाली इंसान हैं”।
इस बार जवाब सुनकर पिता आश्चर्यचकित होकर बोले, “अभी थोड़ी देर पहले तो तुम खुद को दुनिया का सबसे शक्तिशाली इंसान बता रहे थे और अब तुम मुझे बता रहे हो”।
पुत्र ने हंसते हुए अपने पिता को एक कुर्सी पर बैठाया और स्वयं उनके चरणों में बैठकर बोला, “पिताजी जिस पुत्र के कंधे या सिर पर उसके पिता का हाथ हो वह इंसान तो दुनिया का सबसे शक्तिशाली इंसान होगा ही ना”, ‘बोलिए’।

पुत्र की बातों ने पिता का दिल इस कदर जीता था कि उन्होंने अपने पुत्र को कसकर गले से लगा लिया।
सदैव बुजुर्गों का सम्मान करें,
क्योंकि केवल वे ही हमारी
सफलता के एकमात्र पहलू हैं।
माननीय नहीं मानवीय बने
एक बार नदी किनारे एक केकड़ा बड़ी प्रसंता में मौसम का आनंद उठाए चलता जा रहा था और बीच – बीच में रुककर पीछे मुड़कर अपने पैरों के निशान देखता और खुश होता। काफी दूरी तक उसने यही प्रक्रिया दोहराई चलता, पीछे मुड़कर पैरों के निशान देखता और खुश होता।
तभी एक तेज लहर आई और उसके पैरों के सारे निशान मिटाते हुए चली गई। लहर की इस दुष्टता पर केकड़े को बड़ा गुस्सा आया और वह लहर से बोला- लहर ये तूने क्या किया, मेरे बनाए हुए सुंदर पैरों के निशान तूने मिटा दिए जबकि मैं तुम्हें अपना सबसे घनिष्ठ मित्र मानता हूं।

केकड़े के गुस्सैल भरे शब्दों को सुनकर लहर बोली – वहां देखो पीछे मछुआरे तुम्हारे पैरों के निशान देखते हुए तुम्हें पकड़ने आ रहे हैं इसीलिए मैंने तुम्हारे पैरों के निशान मिटा दिए। केकड़े ने पीछे मुड़कर देखा तो सच में मछुआरे उसके पैरों के निशान देखते हुए पीछे – पीछे आ रहे थे। लहर की मित्रता ने आज केकड़े का दिल जीत लिया था। केकड़े की आंखों में आंसू आ गए।
सच यही है – यह हमारी बुद्धि और सोच कि ही परख है कि कई बार हम सामने वाले की बात समझ नहीं पाते और खुद पर अति आत्मविश्वास होने के कारण उसे गलत ठहराते रहते हैं। हमें इस बात को सदैव याद रखना चाहिए कि हर सिक्के के दो पहलू होते हैं। अपने दिल में बैर – भाव लाने से अच्छा है हम अपने दिल की सुने, सोचे और फिर निष्कर्ष निकाले।
अतः माननीय नहीं मानवीय बने।
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Krippa esi hi or kahaniya daliye.
esi kahaniya kabhi kabhi hi padne ko milti h. Bahut kuchh sikha gyi ye kahaniya.