अपाहिज कि संवेदनशीलता । Best Short Motivational Story In Hindi
Short Motivational Story In Hindi
अपाहिज कि संवेदनशीलता
एक बार की बात है, एक पोस्टमैंन घर का दरवाजा खटखटाते हुए बोला – चिट्ठी ले लीजिए
अंदर से एक लड़की की आवाज आई – आ रही हूं पोस्टमैन साहब
लेकिन काफी देर प्रतीक्षा करने के बाद भी कोई नहीं आया तो पोस्टमैन तीखे स्वर में बोला – अरे क्या घर में कोई है अपनी चिट्ठी ले जाइए।
फिर एक लड़की की आवाज आती है – मैं आ रही हूं पोस्टमैंन साहब आप चिट्ठी दरवाजे के नीचे से अंदर डाल दीजिए।
पोस्टमैन झल्लाता हुआ बोला – नहीं मैं यही खड़ा हूं रजिस्टर्ड चिट्ठी है तुम्हारे हस्ताक्षर चाहिए।
तकरीबन दस-बाहरा मिनट बाद एक लड़की दरवाजे पर पहुंची। पोस्टमैन काफी क्रोधित होकर दरवाजा खुलने की प्रतीक्षा कर रहा था। जैसे ही दरवाजा खुला वह चिल्लाने ही वाला था कि अचानक व अचंभित हो गया। उसका क्रोध का भाव करुणा के भाव में परिवर्तित होने लगा। उसने देखा कि उसके सामने बिना पांव की एक अपाहिज बालिका खड़ी थी। जिसके चेहरे से एक हृदय विजेता मुस्कान निकल रही थी।
पोस्टमैंन ने उसे चुपचाप चिट्ठी दी और हस्ताक्षर लेकर चला गया। कुछ दिनों बाद उस लड़की की फिर से एक चिट्ठी आई। पोस्टमैंन ने लड़की को चिट्ठी देने के लिए आवाज लगाई और जब तक वह लड़की चिट्ठी लेने आ नहीं गई पोस्टमैंन तब तक वहीं खामोश खड़ा रहा।

एक दिन उस अपाहिज लड़की ने पोस्टमैंन को नंगे पांव देख लिया। दीपावली भी पास आ रही थी और वह इसी चिंतन में फंसी थी कि पोस्टमैंन साहब को इनाम में क्या दूं। एक दिन जब पोस्टमैंन उसे चिट्ठी देने आया तो अपाहिज लड़की ने मिट्टी पर बने पोस्टमैंन के पैरों के छाप का चित्र बना लिया और अगले दिन अपनी कामवाली बाई से उसी साइज के जूते मंगवाए।
आखिर दीपावली भी आ ही गई। उस दिन पोस्टमैंन गली में प्रत्येक जन से इनाम लेने पहुंचा। उसने सब लोगों से इनाम लिया और सोचा अब इस बेचारी अपाहिज बिटिया से क्या इनाम लेना ? लेकिन चलो दीपावली की बधाई तो देते चले। उसने दरवाजा खटखटाया, अंदर से आवाज आई – कौन?
“पोस्टमैंन उत्तर दिया”।
अपाहिज बालिका अंदर से गिफ्ट लेकर आई और बोली – अंकल यह आपके लिए दीपावली पर मेरी तरफ से भेंट।
पोस्टमैंन – किंतु बिटिया मैं तुमसे यह गिफ्ट कैसे ले सकता हूं ? तुम तो मेरी पुत्री समान हो।
किंतु बालिका ने काफी आग्रह किया कि यह मैंने केवल आपके लिए मंगवाया है, कृपा इसे मना ना करें लड़की के सद्भाव से पोस्टमैंन का दिल पिघल गया उसने ठीक है कहते हुए गिफ्ट कबूल लिया।
बालिका – अंकल इसे घर जाकर खोलिएगा।
घर जाकर जब पोस्टमैंन ने बालिका द्वारा दिया गया गिफ्ट खोला तो आश्चर्यचकित रह गया। उसमें एक जोड़ी जूते थे। उसकी आंखें भर आई। अगले ही दिन पोस्टमैंन साहब अपने ऑफिस पहुंचा और अपने बड़े अधिकारी से खुद के लिए फौरन तबादले की मांग की। जब अधिकारी ने कारण पूछा तो पोस्टमैंन ने जूते टेबल पर रखते हुए सारी कहानी सुनाई।
कहानी सुनाते सुनाते पोस्टमैंन की आँखें भीगने लगी, गला रूधता जा रहा था और बोल रहा था – आज के बाद उस गली में जाने की हिम्मत मुझ में नहीं बची है। उस अपाहिज लड़की ने तो मेरे नंगे पैर इन जूतों से ढक दिए लेकिन मैं उसे पांऊ कैसे दे पाऊंगा।
संवेदनशीलता का यह अहम नियम है, दूसरों के दुख – दर्द को समझना, महसूस करना, उसे कम करने में उनकी सहायता करना उस में भागीदार बनना।
यही एकमात्र ऐसा मानवीय गुण है जिसके बिना इंसान अधूरा है।
अतः संकट की घड़ी में ऐसा समझना कि वह अकेला है, यह एक मूर्खता है, अपितु सारी मानवता उसके साथ खड़ी है।
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Bahut Khub aapne bahut achhi sikh di ess kahani ke dwara. Very intresting really.
Aap bahut achhi kahaniya likhte h. Dil se sukriya esi kahaniya hum tak pahuchne ke liye.
es Kahani ka koi jawab nhi Abhishek Ji. bahut achhi kahani likhi aapne.